पिछ्ले पोस्ट कि बात को आगे बडाते हुए
"विदेशी भाशा का विधारथी होना बुरा नहीं पर अपनी भाशा सर्वोपरि है।"
यह कथन मेरे नही हमारे राश्ट्र पिता महात्मा गांधी जी के है। जी हां हर भाशा का सम्मान करना चाहिये पर सर्वप्रथम अपनी
राश्ट्र भाशा का ग्यान होना चाहिये एक पेड कि कल्पना कीजिये उस पेड कि जडे जितनी गहरी होगी वो उतना हि विकसित और बडा होगा उसी प्रकार प्रकार अगर हमारी मात्र भाशा का ग्यान होगा तो किसी और भाशा को सीखने मे भी उतनी ही आसानी होगी और् हम उतना ही विकास करेगे। मै स्वयं IT सेक्टर की wipro क्म्पनी मे हू और अंग्रेजी भाशा का ग्यान होना आवश्यक है पर इस्का मतलब ये नही कि मै अप्नी भाशा का सम्मान न करु सच कहु तो जब भी अत्यधिक खुश या दुखी होता हु तो अनायास हि मन के उदगार हिन्दी मै हि आते है शायद हिन्दी से मै दिल से जुडा हुआ हू इसीलिये।
अन्त मै यही कहूगा कि चाहे जहा हो चाहे जो भी भाशा सीखो पर पर हिन्दी को दिल से मत निकालना ये मेरा आपसे अनुरोध है।
आप्क विचारों का स्वागत है।
Sunday 27 July, 2008
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1 comment:
लोकेश जी,आप के विचारों से सहमत हूँ।अच्छा लिखा है।
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