Thursday 24 July, 2008

हिन्दी

निज भाशा उन्नति अहॆ सब उन्नति को मूल
बिनु निज भाशा के मिटॆ न हिय को शूल।

यह वाक्य भारतेन्दु बाबा हरिशचन्द्र जी के है जो यहि बखान करते है की हिन्दी जो हमारी राश्ट्र भाशा है उसकी उन्नती के साथ ही हमारी उन्नती सम्भ्व है, आजकल लोग अंग्रेजी भाशा बोलने वालो को समाज मे पडा लिखा और समान्न की द्रश्ती से देख्ते है वो पद हिन्दी को क्यो नहीं जबकी यह तो हमारी राश्ट्र भाशा है । लोग यह बहाना बनाते हुए दिखते है कि अंग्रेजी अन्तराश्ट्रीय भाशा है जबकि पुरे विश्व मे सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाशा तो चीनी है और अन्य राश्ट्र जॆसॆ रुस, चीन, जापान, फ़्रांस आदि विदेश यात्रा पर केवल अपनी भाशा हि बोलते है जब्कि भारतीय नेता अग्रजी का एस्तमाल करते है माननीय पूर्व प्रधानमत्री अटल बिहारी जी ने संयुक्त राश्त्र संघ मे हिन्दी मे भाशण दे कर एक नयी मिसाल रखी है जिस्का हमे अनुसरण करना चाहिये।

अगर आप अपने विचार रखना चाहे तो आपका स्वागत है

4 comments:

Amit K Sagar said...

बहुत खुबसूरत. अच्छा लगा. लिखते रहिये.
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कृपया यहाँ भी पधारे;
उल्टा तीर

शैलेश भारतवासी said...

हिन्दी ब्लॉग परिवार में आपका स्वागत है। हम आपसे नियमित ब्लॉग लेखन की अपेक्षा करते हैं।

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Batangad said...

चलिए जितने लोग जागें बेहतर हैं।

jasvir saurana said...

bahut khub,rajasthani bhai,asha he rajasthan ki mati ki sugandh se aap sara blog mahkane wale .vaise me bhi rajasthan ka hu.........plz remove word verification