क्या खोया क्या पाया इन बीते सालो में
यह सोच सोच कर वक्त गँवाया बीते सालो में॥
आखिर मै ही क्यों इस दुर्भाग्य का ग्रास।
जवाब नहीं था इसका कोई मेरे पास ॥
हर बार शंखनाद को क्यों नही बदल पाया जयघोष में।
शायद संयम खो दिया मैंने जोश में ॥
जो भग्य में नही उसे पाने का मिथ्या प्रयास था।
या यूं कहूँ कि मेरे मन का झूठा खयाल था ॥
अब सोचता हूँ कि क्यों पडा है भाग्य और भूत के जालो में।
जब सामने खडा है आने वाला कल उजालो में॥
Monday 4 August, 2008
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